Friday, February 15, 2019

台湾AI机器人“美玉姨”的使命:甄别假资讯,挑战网路谣言

2018年,台湾工程师徐曦在台北士林街头,听到某教会在向路人宣传理念,并用了一些徐曦认为与事实不合的资讯,听者却似乎趋之若鹜。徐曦感叹:未经证实的传言却能影响一般大众,特别是那些在LINE,台湾最为广用的社交通讯中消费新闻资讯的人。

这次经历根植在徐曦心中。2018年台湾九合一选举过后不久,旅居香港的徐曦让台湾第一个过滤网路假资讯的对话机器人(chatbot)“美玉姨”上线。

“美玉姨”的名字来自“每”当“遇”到谣言的谐音,独特功能在于“互动性”。也就是,只要将“美玉姨”加入LINE里面的聊天群组,一但有人发布不实或争议的资讯,而这个资讯“美玉姨”有所了解(资料库有),“美玉姨”便会自动加入对话,向读者说明这则资讯之真假,或解释这些讯息只是“个人意见”不是官方政策。

“美玉姨”查核的资讯不仅限于在网路上广传的医疗健康新闻,政治新闻及传闻也是她查核的重点。“美玉姨”还提供她判断资讯之消息来源,让读者去查证或参与讨论

网路上,有民众形容“美玉姨”像是足球场上的裁判,会对那些真相难辨的资讯亮出黄牌或红牌。

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资讯战
徐曦告诉BBC中文,“美玉姨”的由来和自己参与网路民主化运动有关。2014年太阳花运动时期,有一群以程序员为主的志愿者成立名为“g0v. 零时政府”的网站及社交媒体群组,试图打破新闻资讯透过主流媒体传播的途径,实践资讯开放,民主化之目的。

徐曦看到,“g0v. 零时政府”网站参与太阳花运动,并不只为宣扬理念,也试图让民众有公平开放的平台获取资讯。

这个网站后来发展成一个数据资料库,取名为“真的假的”,平台集结数十位公民志愿者,搜集四面八方的网路资讯,提供给读者进行查证。

徐曦向BBC中文解释,“美玉姨”判断谣言所需要的大数据,就是来自“真的假的”资料库。

徐曦之前接受台媒访问时便表示,真正辛苦的是后端帮忙搜罗,过滤资料并建立大数据资料库的志愿者。她说,建立资料库确实重要,也许在她旅居的香港,日后也有人可以创建一个网路机器人,供网路读者查询资讯的真假。

资讯民主与政治民主
“美玉姨”诞生的第一天,就有数万则消息涌入。“这也反映出,台湾社会对于资讯民主化的渴求或焦虑,特别是这次台湾九合一选举,资讯战已经被公认为未来政治或社会对话的战场,”台湾高雄医学大学性别研究所所长林津如副教授向BBC 中文说明。

林津如认为,资讯民主化是政治民主化之重要条件,既涉及言论自由,也要求相关资讯以及数据不被政府或霸权团体(譬如专家学者或财团)垄断。

徐曦告诉BBC 中文,“美玉姨”的工作不仅是澄清假新闻,或简单告诉大家Yes 或 No。“美玉姨”更是在期许民众建立辨别新闻资讯之能力和责任。如果民众有天也开始质疑“美玉姨”的观点太过简单,那就达到她创立“美玉姨”最大之目的。

质疑与挑战
BBC中文发现最近,台湾网路平台PTT质疑“美玉姨”是民进党政府派来监听民众的网路工具。这种质疑也在社交媒体LINE上传播。特别是在“长辈”(台湾对中高年龄族群称呼)群组中流传,批评“美玉姨”被民进党政府用来“洗白”对其不利的文章。 批评指,任何批判民进党的文章都会被美玉姨标示为谣言。

徐曦表示,“美玉姨”只会“听”,不会记录民众在社交群组里讨论的讯息。此外也有“深绿”选民质疑她的网路机器人是国民党的打手。“这样看起来,两边都攻击美玉姨是挺黑色幽默的。”徐曦说。

另一方面,她也希望使用者思考,是否未来有人会操控“美玉姨”?

徐曦强调,过度依赖人工智能不是好事。她和林津如在这一问题上持同样观点——资讯社会的隐忧在于非民主政府会想把资讯或新闻集中化,成为知识,来控制人民。“美玉姨便是尝试挑战资讯过于集中化、寡头化这一趋势。”

Thursday, February 7, 2019

सियासत की ज़मीन पर मज़बूती से खड़ी महिलाएं

घर हो या दफ़्तर, राजनीति हो या देश, जब कभी और जहां भी महिलाओं को सशक्त बनाने, उनके हाथ मज़बूत करने पर चर्चा होती है, तो ज़्यादातर बात ही होती है, कोई ख़ास कोशिश नहीं होती.

लेकिन ऐसा नहीं कि करने वाले, अपने स्तर पर कोशिश नहीं कर रहे या कामयाब नहीं हो रहे. जिस देश की संसद में महिलाएं अब तक 33 फ़ीसदी आरक्षण के लिए संघर्ष कर रही हैं, उसी देश के दूसरे कोनों में ऐसी भी महिलाएं हैं, जो अपने हिस्से का संघर्ष कर छोटी-बड़ी राजनीतिक कामयाबी तक पहुंच रही हैं.

कहानी अब गांव का सरपंच या किसी कस्बे का विधायक बनने तक सीमित नहीं रही बल्कि लोकसभा क्षेत्र का सांसद, मंत्री और सूबे का मुख्यमंत्री बनने तक पहुंच गई है. और बीबीसी हिन्दी इस कामयाबी का जश्न मनाने के साथ-साथ राजनीति में महिलाओं की चुनौतियों पर चर्चा के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है.

लीडर भी, निडर भी...' छोटा लेकिन असरदार शीर्षक अंदाज़ा देता है कि महिला नेताएं अब पहले की तरह पुरुषों की परछाई में दुबकी नहीं रही, बल्कि उससे बाहर नुमाइंदगी कर रही हैं, दिशा दिखा रही हैं. वो भी बिना डरे, बिना घबराए.

इस कार्यक्रम में ना सिर्फ़ राष्ट्रीय राजनीति में मौजूदगी रखने वाली महिला नेताओं से बातचीत होगी, बल्कि उन औरतों से भी संघर्ष और सफ़लता पर चर्चा होगी, जो गांव से शहर तक, राजनीति की कठिन डगर का फ़ासला हौसले से पार कर रही हैं.

कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा के साथ इस सवाल के जवाब तलाशने की कोशिश होगी कि जो महिलाएं बड़े दलों में जगह बनाने में कामयाब रहती हैं, उनके लिए पार्टी में शीर्ष तक पहुंचने का रास्ता कितना मुश्किल होता है?

कार्यक्रम में नई पीढ़ी के लोग भी शामिल होंगे जो अंदाज़ा देंगे कि ये पीढ़ी देश की राजनीति और नेताओं से क्या चाहते हैं, क्या उम्मीद करते हैं. फिर बात होगी नई पीढ़ी की औरतों की और उनके राजनीतिक सफ़र में पेश आने दिक्कतों और चुनौतियों की.

इस पर चर्चा करने के लिए बीबीसी के साथ होंगी आम आदमी पार्टी की वरिष्ठ नेता आतिशी और हाल में महिला कांग्रेस की महासचिव बनाई गई अप्सरा रेड्डी

हमारा ध्यान अक्सर उन महिला नेताओं पर जाता है, जो आम तौर पर मीडिया की निगाहों में रहती हैं. लेकिन कई महिला नेता ऐसी हैं, जो ज़मीनी स्तर पर संघर्ष कर रही हैं.

उनके क्या मुद्दे हैं, उनका सफ़र कितना मुश्किल है, वो कितना आगे बढ़ पा रही हैं, इस पर विचार होगा माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य कविता कृष्णन, आम आदमी पार्टी की नेता सोनी सोरी, हरियाणा और राजस्थान के गांवों में सरपंच बनीं सीमा देवी और शहनाज़ ख़ान के साथ.

समय जिस तेज़ी से बदल रहा है, उतनी ही रफ़्तार से देश की सियासत बदल रही है. बड़े चेहरों के इर्द-गिर्द घूमने वाली मौजूदा दौर की राजनीति के तौर-तरीकों और तेवर में महिला नेता किस हद तक फ़िट बैठती हैं और क्या वो इसे बदल सकती हैं, इस सवाल का जवाब देने के लिए मौजूद रहेंगी भाजपा की पूर्व नेता और सांसद सावित्रीबाई फुले और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री स्वाति सिंह.

ऐसी महिलाओं की कमी नहीं जो दूसरे किसी क्षेत्र से आने के बाद राजनीति में अपनी तरफ़ से कोशिश करती हैं, लेकिन क्या उन्हें भी उतनी ही संजीदगी से लिया जाता है, जितना दूसरे नेताओं को?

तृणमूल कांग्रेस की नेता मुनमुन सेन इस सवाल का जवाब देने की कोशिश होगी. इन नेताओं के अलावा बातचीत होगी उन नौजवान महिलाओं से, जो राजनीति और नेताओं पर अलग-अलग राय रखती हैं.

उनसे पूछेंगे कि इंजीनियर और डॉक्टर की तरह, वो राजनीति को विकल्प के रूप में क्यों नहीं देख पातीं. जो तबका वोट देने का हक़ रखता है, वो राजनीति को गंभीरता से क्यों नहीं लेता. उनके आकांक्षाएं भी जानेंगे और मन के सवाल भी टटोलेंगे.

राजनीति में महिलाएं कितनी भी हों, लेकिन महिलाओं की ज़िंदगी में राजनीति और चुनौतियां कदम-कदम पर हैं. फिर चाहें वो रसोई हो या फिर ऑफ़िस का कैबिन. और इस बार बात राजनीतिक महिलाओं की हैं. और होनी भी चाहिए क्योंकि कहीं पढ़ा था, 'कई दर्द के पहाड़ तुझ पर टूटते देखे, पर तुझे कभी टूटते नहीं देखा.'